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२१.
पउमचरित
पुण ईसाण-विसोरु-शुरन्धर । उण्ण-कभ थोर-थिर-कन्धर ।।५|| पुणु विमदंस घोर पुणु वाणर। पुणु विग पुणु कसणुजल मिगषर ॥६॥ पुणु णाणाविक अवर वि थलयर । पुणु कमेण णहयर पुशु जलयर ।।७। भइ-सह-दुक्खर विसहन्ता। एकमेक-सामरिस-वहन्ता ॥६॥
भवें एव भमम्ति भयका में कजें जर्गे रिण-वइरहै
घत्ता
पुज-बहर-सम्बन्ध-पर । जोण कुणइ स(?) वियपर ।।९।।
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तो धणदत्तु वि सुट्टग्माहिउ । मल-यूसर तिस-भुक्तहि वाहिट ||१४ देस देसु असेसु ममन्तउ। दूरागमण-परीसम-सन्तड ॥२॥ पत्त जिणाला रयणिमुहारें। लग्गु चवेव गिरिसदमन्तरें ॥३॥ "अहो अहोंसुकिय किय पध्वड्यहो। म तिस-छुह-महयाहिं लइयहाँ ॥४॥ दे कहि मि बह अग्धि जलोसहु । जं कारणु महन्त-परिश्रोसही" || विहसें वि चवह पहाण-मुणीसरु । “सलिलु पिपवएँ को किर भवसा ।। भूट हियत्तणेण सउ सील। जहिं श्रन्धारऐं कि पि ण दीसह ॥७॥ सूरथवणही लग्गघि दिव-मणु। जहि भविय-यणु ण भुभाइ भोयणु ।। जहि पर-गोयह अस्थि पहअहँ । पेय-महागह-दाइ णि-भूअह ॥१॥
घत्ता
सह-पोखियह मि घर-वाहिर इय सम्वरि-समएँ दुसरें
गलहजइ ओस वि जहिं । कह परिपिजह सलिल नहिं ।।।