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सोमो संधि
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atrer डर छोड़कर और मत्सरसे भरकर एक दूसरेसे जा भिड़े । आपसके एक-से आघातसे एक दूसरेके प्राण खोटे अनुarat भाँति छोड़कर चले गये ।। १-१३ ।।
[४] मर कर वे दोनों विशाल ऊँचे और लम्बे विध्याचल में हरिण कर उत्पन्न हुए। धनदत्त को एक तो गुणवती नहीं मिली, दूसरे वह भाईके मरनेका दुःख सहन नहीं कर सका, स्त्रीके दुःख से व्याकुल होकर वह घर छोड़कर चल दिया अपने नगर से दूर वह देशान्तरों में भ्रमण करनेके लिए निकल पड़ा । कन्या गुणवती भी मन ही मन धनदत्त में अनुरक्त थी। यह दूसरे बढ़िया से बढ़िया अनुरोधजद विदेश गमनसे वह इतनी व्याकुल हो उठी कि पिता जब किसी योग्य वरसे विवाहका प्रसंग लाता, तो यह अत्यन्त रौद्र भावसे भर उठती | सबका नाम सुनकर आपकी तरह भड़क aadi | किसी मुनिका रूप देखती तो उसका मजाक करने लगती और कडुवे लाखों वचन बोलने लगती । वह गुस्से से भर उठती, निन्दा करने लगती, झिड़कती और जैन धर्म उसे स्वप्न में भी अच्छा नहीं लगता। बहुत समय तक इस प्रकार वह आर्तध्यानमें लगी रही, फिर आयुका अवसान होने पर वह मर गयी । अगले जन्म में वह उसी जंगल में उत्पन्न हुई जहाँ वे दोनों मृग थे ।। १-९ ॥
[५] मारुतवाहन हरिणोंके समान, दोनों मृग पूर्णायुके थे । वहाँ भी वे (उसों गुणवतीके कारण ) आपस में बिरुद्ध हो गये, और एक दूसरे से लड़कर मरणको प्राप्त हुए। और यममयि के समान भयंकर महिष हुए और फिर एक दूसरेके लिए विनाशकारी वराह हुए। फिर अंजनगिरिके समान मारो महागज बने, जो अपने कानोंसे भौंरोंको उड़ा रहे थे। फिर वे शिव
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