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परामचरित
तो ताव एव महु-मच्छर जुजिाय उप्रिय-मरण-मय । जापाप विहि मि सम-बाएँ हि बिहुर कु-मिच व मुवि गय ॥१३॥
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पुणु उमङ्ग-विसाल-पईहर। जाय वे वि मिग विश्न-माहीहरें ॥१॥ धणदत्तु वि गुणवई अ-लइन्तउ। माइहे तणउ दुक्नु अ-सहन्तउ ॥२॥ मुबि णियय-घरु सुट्ट रमाउनु । गट पुरवरही देस-भमणाउलु ||३|| चाल विपिन-मणे तहाँ भणुरती । सयकावर वर वर विरती ॥ धणदत्तहाँ गम विच्छाइय। जणणे अषण णिभीयहाँ लाइय ||५|| छाइय अइसउद-परिणाम । सिहि व पलिप्पइ साहुहुँ णामें ||६|| णियवि मुणिन्द-रूयु उवहासइ। कहुयक्खर-सर-वयणई भासइ ॥७।। अकोसह जिन्दइ णिमच्छई। जहण-धम्म सुइणे विण इच्छह ॥८।।
घचा
बह-काले अह-माणेण उप्पण्ण तेथु पुणु काणणे
पुण्णाउस अवसाणे मय । जहि वसन्ति ते ये वि मय ।।१।।
मास्य-वाइण-हरिण-समाणा! विणि वि मिग पुण्यात पमाणा ||१|| सहि पि हा कारण विजो दि । मरणु पर अवरोप्पर जुज्झै वि ॥२॥ माय महिस जम-महिस-मयकर । पुणु बराह अषणोषण-संयङ्कर ।।। पुणु प्राण-गिरिसारुक्ष महागय। कग्ण-पवण-सहाधिप-छप्पय ॥४॥