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________________ चउरासीमो संधि २०. प्रिय पत्नीका नाम रत्नप्रभा था। उसकी एक गुणवती लड़की और एक गुणवान् लड़का था। दोनों ही नवयौवनकी देहली पर पैर रख चुके थे जो ऐसे लगते थे. मानो देवता ही स्वर्गसे आ टपके हों। एक दिन उदाराशयवाले नयदत्तने सागरदत्तसे पूछा-"नवयौवनाओंके मनरूपी धनको चुरानेवाले, अभिनव यौवनसे युक्त, मेरे बेटे धनदत्तको अपनी कन्या दो" ॥१-१०|| [३] यह सुनकर गुणवतीके मनमें अनुराग उमड़ आया। उसने वचन दे दिया। उस नगरमें एक और बनियेका चेदा था, उसके पास बहुत धन था, और वह उस कन्यासे विवाह करना चाहता था। वह श्रीकान्त विष्णु के समान श्रीसे सम्पन्न था। उत्तम श्री सम्पदा और वैभवमें वह विख्यात था । गुणप्रतीकी माता उसे अपनी लड़की देना चाहती थी। वह पुराने वरको कन्या देने के पक्ष में नहीं थी, क्योंकि उसके पास पैसा थोड़ा था।" इस बातका पता बसुइलको लग गया। पण्डित यशवलिके उपदेशके प्रभावमें आकर अपने बड़े भाईको बिना बताये ही उसने नवमेघके समान काले वस्त्र पहन लिये । उसके दाँत, ओठ और जबड़े चमक रहे थे। कपोल हिल रहे थे, आँखें, भ्रभंगसे भयानक लग रही थीं। वह निःशब्द चुपचाप जा रहा था | उसके हाथ में तलवारकी धार आगकी ज्वालाके समान चमचमा रही थी, वह पागल पासके उद्यानमें रातके समय गया । उसने अपनी तलवारसे श्रीकान्तको उसी प्रकार आहत किया, जिस प्रकार बनके आघातसे पहाड़ आहत हो जाता है। श्रीकान्तने भी दुर्दर्शनीय, तीखी धारवाली तलवारसे नन्दाके पुत्र वसुदत्तको आइत कर दिया। दोनों वणिक पुत्र खूनसे लथपथ होकर उद्यानसे निकलते हुए ऐसे लग रहे थे, मानो फागुनके महीनेमें टेसू फूल उठा हो। इतने में वे दोनों
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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