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पउमचरिउ
सह गुण
रयण-पिब-हिणि घन्तर । सुभ सुड गुगवन्तड ॥७॥ विणि ष णव जण पायडियाहूँ | सुरवर इव छु सम्यहाँ पडियहूँ ||४|| एक-दिवसें परमुत्तम-सत्तें ।
सायरदत्तु बुत्तु णत्रदतें ॥ ९ ॥
"तरुणीयण-मण- घरा-घेण जुह तगिय तय धणदसह
घन्ता
अहिणव- जोध्वणधाराहों । दिज सुबह महाराों" ॥॥१०॥
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सुर्णेवि वडिय - अणुराएं । तो पुरै तर्हि जे अवरुणिरु बहु-अणु सिरि-कन्तु व सिस्क्रिन्तु पसिन् । हा जण सुय देवि समिच्छइ एह वत्तणिसुर्णे विवसुदन् । सुहि-जष्णव लि-दिष्ण उचएसँ । फुरिय-- ओम वयर्णे । गिरणीसह चले संचारें । मन्दिर पासुजाण पमाइड । आयामें वि भहड असि धाएं । ते वि दुणिरिख तिक्खर्गे ।
दिग्ण वाय तह गुणव-साएं ॥११॥ वणि-वणुरुहु कुमारिण्हण मणु ॥ २ ॥ वर- सिय-सम्पय रिद्धि-पसिद्ध ॥२॥ । श्रोषधयाँ चिर-वरहों न इच्छइ ॥४॥ पढम-सहोयर- अणयाणन्ते ॥ ५५ ॥ परिहिय णव जळयासिय वा ॥ ६ ॥ «fà¤-1-4-×5(-naï ||0|| सिहि-सिंह-हि-असिवर-फरगणु स्यणि-समऍ सम्माड ||९|| णाइँ महीहरु असण-शिहाएं ॥ १० ॥ ताडिउ भन्दा णन्दणु खर्गे ॥११॥ विणि विवण-वित्तिरुहिरोलिय । णं फग्गुणे पलास फुलिय ॥ १२ ॥
रधारे ॥८॥