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तभासीमो संधि
२०३ थी। अपने यशसे दुनियाको धवलित करनेवाले रामने अपने करकमल सिरसे लगा लिये, और विनयपूर्वक पूछा, “हे आदरणीय, धर्मका स्वरूप समझाइए"। तब उन्होंने भी संक्षेपमें वही सब कहा, जो आदि जिनभगवान्ने भरतसे कहा था। तप, चरित, व्रत दर्शन, ज्ञान, पाँच गवियाँ, जीव गुण स्थान,क्षमा, दयादि धर्म, अधर्म, पुराण, जग, जीव, उच्छेद आयुप्रमाण, समय पल्य, रत्नाकर पूर्व, और दिव्य बन्ध मोम और लेझ्यार, इन सबका उन्होंने वर्णन किया। ये, और दूसरी समस्त बातें मुनियों में सर्वश्रेष्ठ उन सर्वभूषण मुनिने उसी प्रकार बतायी जिस प्रकार ऋषभ भगवानने परमागममें बतायी हैं ॥१-२०।।
महाकवि स्वयंभूसे किसी प्रकार बचे हुए, पनचरितकं शेषमागमें ग्रिभुवन स्वयंभू द्वारा रचित, सीतादेवीकी प्रत्रज्या नामक आदरणीय
पर्व समाप्त हुआ |३॥
'बन्द' के आश्रित त्रिभुवन स्वयं कवि द्वारा कथित पद्मचरितको
भुवन प्रसित शेषमागमें यह तेरामीची सगं समाल हुआ |
विजय शेष, कत्रिराज स्वयंभूका यश, त्रिभुवन स्वयंभूने पद्मचरितका
शेषभाग लिखकर संसारमें प्रसारित किया ॥२॥