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पउमचरित
पत्ता एल्थन्तर घलु उग्मुच्छियर जो रहु-कुल-आयास-रवि । तं भासणु जाप णिहालइ जणय-तणय सहि ताव ग वि ॥९॥
[१९] पुणु सम्बाद दिसाउ णियन्तउ । उद्विउ 'केसहें सीय' भणन्तउ ॥१॥ केगा वि स-त्रिणएण तो सीसइ । 'पवरूजाणु एउजं दीसह ।।२।। इह गिय-सुर हि सुसीलालतिय । मणि-पुङ्गवहाँ पासु दिक्षत्रिय' ।।३।। सं शिसुणेवि रहु-णन्दणु कुछ। जुभ-खएँ णा कियन्तु विरुदउ ॥४॥ रत-णेनु भउहा-भङ्गुर-मुहु । गउ नहीं उजाणहाँ सचमुहु ॥५॥ गएँ आरूह मच्छर-मरियडं। पछु-विजाहरेहि परियरियड ||३|| इकिमय-ससि-धवलायवचारणु। दाहिण-करें कय-सीर-पहरण ||७|| 'जं किंउ चिरु मायासुग्गोषहों। जं लावणेण समर वहगीयहाँ ॥८॥ न करेमि वढिय-अवलेवह। वासव-पमुह-असेसहँ देवई' ॥१|| सहुँ णिय-मिझेहि एव चवन्त छ । सं महिन्द-जन्दगवणु पसल !!३०॥ पश्येत्रि गाणुप्पण्णु मुणिन्दहीं। विलिउ मच्छरु सयलुणरिन्दहीं ।।
पत्ता
ओयावि महा-गप-सन्धहों पहिण देवि स-गरवण । कर मडकि करवि मुणि पन्दित पय-पिरेण सिरि-हलहरेंग ॥२॥
[२०] जिह तें तिह वन्दिउ सागन्दै हि । लक्लग-पमुह-अखेस-परिन्दै हि ।।३॥ दिवसीय सहि राहन-पन्दें। णं तिहुमण-सिरि परम-झिणिन्दै ४२॥ मसि-धवलम्बर-जुवलालकिय। महि-णिघिट्ट छुबु फुलविक्सक्रिय ||