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पउमचरिउ
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तं गिबि परिचत्त सहिऍ । "अहो राहब में जाहि बिसायौं ।
को सकइ णासहँ पुराइड । व महूँ विदेस णिउसी । बहु-वार तम्बोलु समाणिउ । बहु चार पयडिय बहु- मोग्गी।
एव जम्पिट पुणु वइदेशिऍ ॥ १ ॥ णषित दोसु ण उण साय हों ॥ २॥ भव भव सहि विणासिय धम्महों। सभ्तु दोसु ऍड दुहिय-कम्महों ॥ ३ ॥ जं अलग्गज जीनहुँ आइ ||४|| तुज्झु पसाएं वसुमइ भुती ॥५॥ इहलोइड सुहु सबलु विमाणि ॥६॥ पहुँ सहुँ पुष्क- विभाणे बग्गी ॥७॥
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दानवा
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एवहि तिह करेमि पुणु बहुबइ ।
महु विषय सुहिं पात्त वणी भव-संसारहों
बहुपमण्डि || || जिहण होमि परिचारी तियमइ ||९||
धत्ता
छिन्दमि जाह-जरा-मरणु । लेमि अजु धुधु तव चरणु' || 1 ||
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एमताएं ऍड वयणु चत्रेष्पिणु । दाहिण करेंण समुप्पादेपि ॥१॥ णिय- सिर-चिरविलीयान्वहों । पुरज पवत्रिय राव चन्द || २ || केस विवि लो षि सुखं । पडिउ नाइँ तरुवरु मरु-भाइ ॥ ३ ॥ महिहिं णिष्णु सुड्डु विशेषणु । जाय कह वि किर होइ सन्धेयणु || ४ || ताव गियन्त जिण-पय-सेवहँ बिनाहर भूगोयर देवई ॥ ५॥ सीयऍ सोल- तरण्ऍ थाएँवि । पासँ सम्बभूलण सुणिनाददों । नाम तुरिव तव-भूसिय विगाहु ।
छ दिक्स रिसि-आसमें जाएँषि ॥६ मिस - केवल गाण - सनाइहाँ ॥७॥ मुह-सम्ब-पर-वरथु-परिग्गहु ||८||