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________________ तेआसीमो संधि और बेलंधर, सुप्रोष नील और मतिसागर, सुसेन, विश्वसेन और जसाकर, विभीषण, कुमुद और अंगद, जनक, कनक, मारुति और पवनञ्जय, गय. गवस, गवान और विराधित, वनजंघ, शत्रुघ्न और गुणाधिप, महेन्द्र, माहेन्द्र, दधिमुख, तार, तरंग, रंभ, प्रभु और दुर्मुख, मतिकान्त, वसन्त और रविप्रभ, चन्द्रमरीची, हंस, प्रमु और हदरथ, राजा चन्द्रराशिका पुत्र रतनकेशी और पीतंकर, विद्याधर. जम्म, जाम्बव, इन्द्रायुध, मन्द, हस्त, शशिप्रभ, तारामुख, शशिवर्धन, श्वेतसमुद्र, रतिवर्धन, नन्दन और कुन्देदु, लक्ष्मीभुक्ति, कोलाहल, सरल, नहुष, कृतान्तपत्र और तरल ये सब उस अवसरपर यहाँ पहुँचे | और भी दूसरे रोमांचित हृदय, एक-एक प्रधान भी, आकर मिले मानो लक्ष्मीके अभिषेक समय समस्त दिग्गज ही आकर मिल गये हों ॥ १-१२ ॥ _[१६] तब राघवचन्द्र ने कहना प्रारम्भ किया, "अकारण दुष्ट चुगलखोरोंके कहनेमें आकर, अप्रिय मैंने जो तुम्हारी अवमानना की. और जो तुम्हें इतना बड़ा दुःख सहन करना पड़ा, हे परमेश्वरी, तुम उसके लिए मुझे एक बार क्षमा कर दो, आओ चले । तुम घर देखो और अपने सब परिजनोंका पालन करों, देवताओंके सुन्दर पुष्पक विमानमें बैठ जाओ, मंदराचल और जिनमन्दिरोंकी वन्दना करो। उपवन, नदियों और विशाल सरोवरोंसे युक्त कल्पद्रुम, कुलगिरि पर्वतपर, और जो दूसरे क्षेत्र हैं, विशाल नन्दनवन और कानन, जनपद वेष्टित द्वीप तथा रत्नाकर आदिकी यात्रा करो। मेरा यह कहा अपने मनमें रखो, समस्त' ईर्ष्याभाव छोड़ दो, इन्द्र के साथ जैसे इन्द्राणी राज्य करती है, उसी प्रकार तुम भी समस्त राज्य करो ॥ १-८॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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