________________
पउमपरित सिंह सुग्गीव-गोल-मइसायर। निह सुसेण-चिससेण-जसायर ll तिह स-विहीसण कुमुअङ्गमय । अणय-कणय-माह-पवणाय || सिंह गय-वय-पवक्रय-विराहिय । बजजा-ससहण गुणाहिय ॥५॥ तिह महिन्द-माहिन्दि स-दहि मुह । पार-३.२४ रस्म-मधुनुह ॥६॥ तिह महकम्त-वसम्तनविष्पह । चन्दमरीचि-हंस-पहु-दिवरह ।।७|| चन्दरासि सन्ताय गरेसर। स्यणकसि-पीहङ्कर रेयर ||८11 तिह जम्बव-जम्ववि-इन्द्राउह । मन्दहस्थ-ससिपह-तारामुह ॥१॥ तिह ससिवाण-सेय-समुह वि। रहवाम-गन्दा-कुमंद (वि010|| कृच्छिभुत्ति कोलाहल सरक वि। गहुस-क्रियन्तवस-चल-तरल वि ॥१॥
धत्ता अवर वि एक्का-पहागा उर-रोमाञ्च-समुच्छलिय। महिपेय-समाएँ, लच्छिह मयल-दिमा-गइन्द मिलिय ॥१२॥
[१६] तो प्रालिमह राहव-चन्द 'णिक्कारणे खल-पिसुणहै छन् || || जं अवियप् म अवमाणिय। अण्णु चि दुहु एवंड पराणिय ॥२॥ तं परममरि महु महसे नहि। एक-वार अवराह खमेमहि ॥ २ ॥ भाउ जाहुँ वर-वासु गिहालहि । सयलु विणिय परियणु परिपालहि ।। पुप्फ-विमाणे चहि सुर-सुन्दरें। वन्दहि जिग-भवणइ गिरि-मन्दरें ।। ५ उबवण-गहउ महरह-सरवरें। खेत्तर कापदुम-कुलगिरिषरें ॥६॥ णन्दणवण-कागाइँ महायर। जगवन-वेद-दीव-रयणायर ॥७॥
घत्ता मणे घहि एउ महु बुसल मरछरु सबलु वि परिहरहि । सह जिह सुरवइ-संसग्गिएँ णीसावण्णु रजु करहि' ॥८॥