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टेपार्थी संवे
किया हो, तो मुझे जला दो । यदि मैंने सारी दुनियाको पीड़ा पहुँचायी हो तो मुझे जला दो, यदि मैंने मनसे रावणकी इच्छा की हो तो जला दो मुझे। दुनियामें भला इतना बढ़ा धीरज किसके पास होगा कि आग उसके लिए ठण्डी हो जाये, और वह जले तक नहीं | उस अवसरपर इन्द्र बहुत प्रसन्न हुआ और उसने देवताओंसे कहा, "आग भी आशंकामे पड़ गयी है, यह जल नहीं सकती, शायद सतीत्वका प्रभाव देखना चाहती है” ।। १-१० ।।
[१४] इसी बीच वह आग, नवकमलोंसे ढके हुए सरोचरके रूपमें बदल गयी । सारस, हंस, क्रौंच और कारण्डवीं एवं गुनगुनाते भोके समूहसे युक्त सरोवरका अविश्रान्त जल कहीं भी नहीं समा पा रहा था। सैकड़ों मंचों पर रेलपेल मचाता हुआ बह रहा था । सीता नामसे वह पानी इतना बढ़ा कि रामसहित सबलोगोंके नष्ट होने की आशंका उत्पन्न हो गयी। उस सरोवर में एक विशाल कमल उग आया, मानो सीतादेवीके लिए आसन हो । उस कमलके मध्य में मणियों और स्वर्णसे सुन्दर एक सिंहासन उत्पन्न हुआ। उसपर सुरवधुओंने स्वयं जनाभिनन्दित सीतादेवीको अपने हाथों उस आसन पर बैठाया। उस समय पर - मेश्वरी सीतादेवी ऐसी शोभित हो रही थीं मानो कमलके ऊपर प्रत्यक्ष लक्ष्मी ही विराजमान हों । देवताओंके समूहने दुन्दुभि बजाकर फूलोंकी वर्षा की। शुभ वचनोंसे परिपूर्ण जयजयकार शब्द होने लगा, तूर्योका स्वर जानकीदेवीके यशकी भाँति फैलने लगा ॥१- १०॥
[१५] इतने में दीर्घायु लवण और अंकुश सीतादेवीके पास पहुँचे। उसी प्रकार राम और लक्ष्मण दोनों, भामण्डल, नल