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पउमचरित्र बहें ठहें सबल-भुवण-सन्तावणु । जइमई मणेण वि इच्छिउ रावणु'॥८॥ तं एवढ्दु धीर को पाचइ। सिहि सीयलउ होहण पहावर ॥९॥
घत्ता
तहि अवसर मणं परितु कहइ पुरन्दर मुर-बणहाँ। 'सिहि सम है वि ण सकाइ पेक्वु पहाउ सइत्तणही' ॥१०॥
[१४] नाम तरुण-तामरस हि छपणउ। सो में जलणु सरवर उपप्पाउ ||१| सारस-हंस-कोश-कारण् हि। गुमगुमन्त-छप्पय-विच्छ हि ॥२।। जलु अस्थाएँ कहि मि माहउ । मन-सयह रेल्लन्तु पधाइड ॥३॥ णासइ सन्चु लोड सहुँ रामें। सलिलु पबलिड सीयहँ णा ॥१॥ अपाणु वि सहसपसु उप्पण्णउ । दियाएँ श्रासणु णं अवहणउ ॥५॥ ताम मा मणि-कायय-नवपणउ । दिवासणु समुच उप्पगड ॥६॥ तर्हि आणई जण-साहुक्कारिन । सई सुरवर-वहूहि यइसारिय ॥७॥ तहि वेलहि सोहई परमसहि। ण पचव लच्छि कमलोवरि ॥८॥ भाहय दुन्दुहि सुरवर-सस्थें । मेछिड कुसुम-वासु सहै हाथें ॥५॥
घत्ता
जय-जय-कारु पघुड णाणाविह-तूर-महारट
मुह-बयणावण्णण-मस्ति । जाणइन्जसु व पवियरिंग १०॥
जाण
[१५] तो एत्यन्तरे णिरु दीहाउस। सीयाँ पासु ढुक लवणकुस ॥६॥ जिह से तिह विषिण वि हरि-हळहर सिह मामण्डल-प्पळ-वेलन्धर ॥२॥