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________________ पउमचरिख गउ गणन्ति णिय-कुछ मइलम्तड । तिहुअणे अयस-पडहु वजन्सउ |५|| अङ्ग ममोचि धिन्तिकारही। वयणु णिन्ति केम भत्तारहों' ॥३॥ सीय ॥ भीय सइसण-गवें। वलेंवि पत्रोल्लिय मच्छर-गन्वें ।।७।। 'पुरिस मिहीण होन्ति गुणवतरित लिचहें ण पसिजन्ति नरम वि !! घत्ता खडु लाडु सलिलु वहन्तियाँ रयणापरु खारदेन्तड पउराणियहें कुलुग्गबहें। हो नि " अक जम्मयहे ।।९।। [५] साणु ण कैग वि जणॆण गभिजाइ । गङ्गा-णइहि तं जि पहाइजह ||१॥ ससि स कलातहि जि पह णिम्मल। काकट मेहु नहि जतादि उजल॥२॥ उवलु अपुजण केण वि छिचपइ । तहि जि परिम चन्दणेण विलिप्पइ॥३॥ धुज पाउ पक जइ लग्गइ। कमल-माल पुणु जिगहों बलगाइ।।४।। दीवर हाइ सहावे काला । वहि-सिंह मण्डिमा पालड ॥५॥ गर-पारिहि एण्ड अन्तरु। मरण थि बेल्लि ग मेल्लइ तस्वरु॥६॥ ऍह पई कवण बोल पारम्मिय । सह-बडाय मई अन्जु समुत्रिमय ॥७॥ तुहुँ पंक्षन्तु अच्छु वासस्थउ । उहउ जलणु जई र वि समस्थ॥॥ घसा किं किजा अपणे दिखें जंण वि सुज्झइ महु मणहाँ । जिह कणय-लोलि सहसर अच्छमि म हुआसगहों' ||२||
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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