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पड़मचरिख
जहिं माणुस जीवन्तु वि लुचई। चिहि कलि-कालु वि पाणहुँ मुखइ।।६।। सहि वणे घल्लाविय भण्णाणे। प्रवाहि कि तहाँ तणेण विमाणे ॥४॥
जो तेण हाहु उपाइयउ सो दुकर उल्हाविजय
छत्ता
पिलुणालाव-मरीसिऍण 1 मेह-सएण वि वरिसिएंण ८॥
जइ चिण कारणु राहन-चन्दें। तो वि जामि ल तुम्हहँ छन्द ।।१।। एवं मणेवि देचि जय-सुन्दरि। कम-क्रमलहि अचन्ति वसुन्धरि ॥२॥ पुष्फ-बिमाण चसिय शुर। यिनमा , ३ कोसल-गायरि पराइय जाहि। दिपामगि गइ अस्थय होता हिं। जेस्थहाँ पिययमेण जिम्वासिय। तहाँ उववणहाँ मो आवासिय ॥५॥ कह वि विद्राणु भाणु पहें उपग। अहिमुहु सजण-लोड समागउ ||611 दिई सूरई मङ्गल धोसिउ । पद्दणु गिरवसेसु परिओसिउ ॥७॥ सीय पविट्ठ णिजिट्ट वरासणें । सासण-देवय गं जिग-सासणे 100
घत्ता परमेसरि पढ़म-समागमें इति णिहालिय हलहरेण । सिय-पखहाँ दिबसे पहिल्लएँ चन्दलेह णं सायरेण ॥९॥
[4] कम्त तणिय कन्सि पेपिणु । पमणइ पोमणाहु विहसेप्पिणु ॥१॥ 'मह वि कुलुग्गयाउ गिरवजउ । महिलब हीन्ति सुटङ मिलनड ॥२॥ दर-दाविय-फडकख-विक्खेषउ । कुडिछ-माउ बढ़िय-अवलेवउ ।।३।। बाहिर-धिट्ठल गुण-परिहीण 1 किह सय-खण्ड अन्ति णिहीगउ॥॥