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तेवासीमो संधि
१५ पाँचोंको एक जगह रखिए ॥ १-२॥
[५] यह सुनकर राम सन्तुष्ट हो गये। ऐसा ही हो' उन्होंने आदेश दिया। विभीषण अंगद और सुप्रीव दौड़े गये, चन्दोदर पुत्र और हनुमान भी। भेजा गया पुष्पक विमान आकाशमें ऐसा लगता था मानो नभतलके सरोवरमें विशिष्ट कमल हो। वह पुण्डरीक नगरमें पहुँच गया। सबने देवी सीताको देखा, वे फूले नहीं समाये। उन्होंने प्रशंसा की, "देवी आनन्द में रहो; बड़ो. तुम्हारी जय हो, आयु लम्बी हो, तुम्हारे लवण और अंकुश जैसे बेटे हैं, तुम्हें क्या कमी है। उन्होंने राम और लाहमणको उसी प्रकार झुका दिया है, जिस प्रकार सिंह हाथीको झुका देता है।" उनको समरांगणमें नारदने रक्षा की। अब उन्हें अयोध्यामें प्रवेश दिया गया है। हम तुम्हे बुलाने आये हुए हैं। अब तुम्हारे दिन बड़े सुन्दर होंगे। "आदरणीय आप पुष्पक विमानमें बैठ जाइए और चलकर अपने पुत्र पति और देवरसे मिलिए और उनके बीच आरामसे उसी प्रकार रहिए, जिस प्रकार चारों समुद्रों के बीच धरती रहती है ।। १-२ ॥
[६] यह सुनकर लवण और अंकुशकी माँ सीतादेवी भरे गलेसे बोली, "पत्थर-हृदय रामका नाम मत लो। उनसे मुझे कभी सुख नहीं मिला, मैं यह जानती हूँ | जिसने रोती हुई मुझे हाइनों, राक्षसों और भूतों से भयंकर पनमें छुड़वा दिया, जिसमें बड़े-बड़े सिंह, शार्दूल, हाथी और गेंड़े थे। बर्वर शवर और प्रचण्ड पुलिंद थे। जिसमें तक्षक, रीछ और रुरु, साँभर थे,
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१. अर्थात् जिस प्रकार ये चो में एक साथ नहीं रह सकती, उसी प्रकार
सीताका शील और कलंक एक साथ नहीं रह सकते ।