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पवमचरित
जा अणु गुप्ण-सिक्खा-वय-धारी । जाम जिह सायर- गम्भीरी । जाणमि अक्स - लक्षण -जणेरी ।
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जामि सस मामण्डल - यहाँ । जाणमि जिह अन्डर-सारी ।
मेल्लेपिणु णायर होऍण जो दुजसु उप्पर घित्तर
तहि अवसर रयणासव-जाएं । बोलाविय सहें वि तुरन्ते । विणि त्र विण्वन्ति पणमन्ति 'देव द्वेष जड़ हुअव हु बज्झ । जद पायाएँ हलोइ । जड़ उप्पज्जड़ मरणु कियन्तीं । ब भरें उग्गम दिवास । एड असेसु वि सम्भाविज ।
जा सम्मत्त रयण-मणि- सारी ॥४॥ जामि हि सुर-महिहर धीरी ॥५॥ जाणमि जिह सुख जणयहाँ केरी ॥ ६३॥ आण ि मामिणि रजहाँ आयहाँ ॥ * ॥ जाणमि जिह मह पेण-गारी ॥ ८ ॥
धत्ता
महु घरें उमा करें चि कर । एउ ण जाहों एक पर' ॥५॥
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कोक्किय विषय विहीण-राएं ॥१॥ कासुन्दरि सो हवन्ते ||२||
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सोय सइत्तण गव्यु वहति ॥ ३ ॥ जड़ मारुड पड पोइहें वह ||१४|| कालान्तरेण कालु जइ विइ ||५|| जड़ गासह सासणु भरहन्तहीँ ॥ ६ ॥ मेरू सिहरें जइ विषसह सायरु ॥७॥ सी सी पुणु मइकिन ॥ ८ ॥
जड़ एक वि ण्ड पत्तिजहि तुल बाउल विस-जल-जलहँ
घत्ता
तो परमेसर एड करें 1 पञ्चहँ एक्कु जि दिनु घरें ॥ ९ ॥