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तेआसीमो संधि
१८१ इतनी व्यस्त थीं कि पास में खड़े अपने पतियों को भी कुछ नहीं समझ रही थीं। सीतापुत्रोंके सौन्दर्यको देखनेकी आतुरतामें कोई स्त्री अपनी आँखों में लाप्यारस लगा रही थी। कोई स्त्री अधरोंमें काजल दे रही थी। कोई अपना आँचल पीछे फेंक रही थी। कुमार लवण और अंकुशके दर्शनोंने स्त्रियों को अस्तव्यस्त बना दिया। ठीक भी है, क्योंकि जब काम कुसुमधनुष
और तीर लेकर निकलता है तो वह किसे अपने वश में नहीं कर लेता ॥ १-१०॥
[२] इस प्रकार तरुणीजनको पीड़ित करते हुए लवण और अंकुशने नगर में प्रवेश किया। सबकी सब भीड़ उनके साथ था। भामण्डल नल, नील, अग, अंगद, लंकाधिप और किकिधराजा भी थे। जनक, कनक और हनुमान भी वहाँ आये। जो और भी ( सामन्त ) प्राम, पुर और देशोंको भेजे गये, उन्हें भी बुलाषा भेजा गया। सब नाना यानों और विमानों में इस प्रकार आये, मानो जिन-जन्मके समय देवता ही आये हों। उन्होंने क्रमशः राम-लक्ष्मण लवण और अंकुशको देखा । फिर उन्होंने शत्रुघ्नको देखा । थे ऐसे लग रहे थे, मानो पाँच मन्दराचल एक जगह आ मिले हों। फिर उन्होंने रामका अभिनन्दन किया, "तुम धन्य हो, जिसके ऐसे पुत्र हैं।" परन्तु इसमें खटकनेवाली एक ही बात है, वह यह कि परमेश्वरी सीतादेवी, अपने घरमें नहीं हैं । लोकापवादमें विश्वास करना ठीक नहीं, इसकी कोई दूसरी परीक्षा करनी चाहिए ॥ १-९॥ ।
[३] यह सुनकर रामने कहा, "मैं सीतादेवोके सतीत्वको जानता हूँ | जानता हूँ कि किस प्रकार हरिवंशमें जनमी । जानता हूँ कि यह किस प्रकार प्रतों और गुणोंसे परिपूर्ण हैं। जानता हूँ कि वह जिनशासनमें कितनी आस्था रखती हैं।