SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८० सीमा-दण-रूवाकोयणं । का विदेह अहरुलऍ कजलु पउमचरिउ विवरेरड णायरिया षणु जग फार्मे को वि ण उणीव आयल तहि तेह पमाणे विजाहर मामण्डल - णल-नीलङ्गङ्गय | जे पट्टकिय गाम-पुर-इंस हुँ । गाणा जाण विसा हि श्राय । दि रामु समिति महाउसु । सत्तणो विदिताह सुन्दर । पुणरवि रामों किया अहिन्दन । - लाय का वि अलसउ छोयनें ॥ ४ ॥ काऍ त्रिवति पन्छऍ अखलु ॥९॥ वत्ता ड किउ लवणस दंसणेण । स सरें कुसुम-सरायण ॥११०॥ [+] एतख दो पर रहुवइड़ें म पमायहि छोयहुँ छन्दै सं णिहुणेवि चत्र रहुणन्दणु । जाणमि जिह हरि सुवण्णी । जाणमि जिह जिण सासणे मती । चारिय लक्का हिय कि फिन्ध पुरेसर ||२|| जमय ऋणय-मस्तणय समाय ॥३॥ गय हक्कारा चाहूँ मसेस हूँ ॥ ४ ॥ णं जिण जम्मणे अमर पराय ||५|| दिट्ठ मदणङ्कसु ॥ ६ ॥ .5 व एकहि मिलिय पञ्च णं मन्दर ॥ ७ ॥ घण्णव तुहुँ जसु एहा जन्दन ॥ ८ ॥ घता 6 जं परमेसरि णाहिँ घरे । आत्रि का धि परिक्षा करें ||९|| [4] 'जागमि साय तण सप्तणु ॥११॥ जाणमि जिह वय गुण - संपण्णी ॥२॥ जयमि जिह महु सोक्लुप्यन्ती ५५ ॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy