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बासीमो संधि
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सभी जगह लवण और अंकुशके साहसकी चर्चा हो रही थी ।। १-९ ॥
[१८] लक्ष्मणने तब खर-दूषण और रावणको संहार करनेवाले चक्रको अपने हाथ में ले लिया, जो सौ-सौ सूर्योकी तरह चमक रहा था, जिसकी धार पैनी थी, रावण का अन्त करनेवाले दस आरे उसमें लगे हुए थे, जो क्षयकालकी ज्वालमालाके समान भयकर था, ऐसा लगता जैसे साँप ही लक्ष्मणकी हथेलीपर कुण्डली मारकर बैठ गया हो । सफेद और उबल, जो चक्र लक्ष्मणकी हथेलीपर ऐसा शोभित हो रहा था जैसे कमलके ऊपर 'कमल' रखा हो । लक्ष्मणने उसे धुमा कर मार दिया । वह भी आकाशमें घूमता दृशा गया | रो हार हर दोनों में हरत देवों और मनुष्यों को शंका हो गयी कि अब तो सीतादेवीके दोनों पुत्रोंका अन्त समीप है। परन्तु आशाके विपरीत, वह चक्र लवण और अंकुशकी तीन प्रदक्षिणा देकर वापस लक्ष्मण के पास आ गया । लक्ष्मण ने दुधारा उसे मारा, परन्तु वह फिर लौटकर आ गया । लक्ष्मण बार-बार उस चक्रको छोड़ते उस बालकपर, परन्तु वह उसी प्रकार वापस आ जाता जिस प्रकार बाहरसे सतायी हुई पत्नी घूम-फिरकर अपने पतिक पास आ जाती है ॥ १-२ ।।।
[१९] तब कलह कराने में सदा तत्पर और चतुर नारद आनन्दसे नाच उठे । उन्होंने कहा, "अरे राम और लक्ष्मणकी यह कौन-सी बुद्धि है। अपने ही पुत्रोंको मारकर उन्हें शुद्धि. कहाँ मिलेगी जब सीतादेवी गर्भयती थी, तब उसे बनमें निर्वासित कर दिया गया। वहीं ये दो पुत्र उन्हींसे उत्पन्न हुए। इनमें पहला अनंग लवण है, जो कुलकी शोभा और जयश्रीका का निवास है, दूसरा यह मदनांकुशा है। हे देव ! इनके