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पउमचरित
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खरवूसण-रावण-घायण। सो लहर चक्कु गारायणेण ॥॥ सय-सूर-समप्पहु णिसिम-धारु । दसकन्धर-दारणु दससयार ॥ खम-जलण-जाल-माला-रउद्दु। कुण्डलेंवि पाइँ थिउ विसहरितु ।।३।। धवलुजलु हरि-कस्यले बिहाइ। चर-कमलहों उप्परि कमलु णा ॥४॥ आयामधि मलिक लक्षणेण। गउ फरहान्नु णहें सक्रश्योण ।।। आसकिय सुर गर जेऽणुरस । ४३. हि.पा-सुप्रभामट' ।।६।। ति-पयाहिफा गवरसह) ३वि। थिन हरि पडाबज़ करें चडेवि ॥७॥ पडियारउ घत्तिउ लावणेण। परिवारस आइ उ तक्मणेण ।।८।।
घत्ता
हरि आमेलइ अमरिमैण वाहिर-वियु कम तु जिद्द
तहाँ वालही तणा पहावइ । परिभमेयि पुगु पुशु आपइ ।।९।।
[१९] सो सयन-काल-कलिभारएण। आणन्दु पणचिड गारएन । १॥ 'हरि-वलहों एह किर कवण बुद्धि । णिय पुस पवि फहि लरहों सुद्धि॥।॥ गुरु हार वणसरे मुक्क देवि । उप्पण्ण तणय तह एय पि ॥३॥ पहिलारउ पहु अणकलवणु। कुल-मपक्ष जयसिरि-वास-मवणु ।।४।। बीयउ मयणकसु बहु देव । सहुँ आयहुँ पहरहो तुम्हि केव' ॥५||