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बासीमा संधि
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जिसने सुमीको उसकी वारा दिलवायी थी, और जिसने रावणको अनेक बार घायल किया था, ऐसे अपने धनुष प्रवरको लेकर, जबतक राम अपने लक्ष्यपर निशाना लगाते, तबतक सीतापुत्र लवणने उनके रथके दो टुकड़े कर दिये । युद्धमें रस लेनेवाले देवता यह देखकर बहुत प्रसन्न हुए । सारथि घायल हो गया और बड़े-बड़े घोड़े उस समय ऐसे लगे जैसे समुद्र से उसकी तरंगें छीन ली गयी हों। अनंग लवणने तब रामसे कहा, "यदि तुम उपवास ( युद्ध के बिना ) क्षीण हो गये हो तो अपने उसी समस्त पराक्रमसे प्रहार करो, जिससे तुमने निशाचर रावणको जीता। तत्र अत्यन्त खिन्न होकर रामने कुमार लवणपर तीरों की बौछार की किन्तु राम के पास वह उसी प्रकार लौट आयी जिस प्रकार कुलवधू अपने पति के पास लौट आती है ।। १-९ ।।
[१७] रामका एक भी तीर कुमार लवणके पास नहीं पहुँच पा रहा था, न हल और न मुद्गल; न कृपाण और न मूसल, न गदाशनी और न चक्र, इसी प्रकार दूसरे- दूसरे अभंग अस्त्र उसके पास नहीं पहुँच रहे थे, राम जो भी अस्त्र उठावे, कुमार लवण उसे ध्वस्त कर देता उसने रामका अस्त्र गिरा दिया, छत्र गिरा दिया, महाश्व मारे गये, सारथि धरतीपर लोट-पोट हो गये। यह देखकर आकाशमें देवता आपस में बातें करने लगे कि क्या ये बच्चे राम और लक्ष्मणको जीत लेंगे। दे मजाक उड़ाने लगे कि क्या युद्ध में निशाचरोंको मारनेवाले दूसरे थे ? जिसने खर दूषण और शम्बूक कुमारको मारा था, क्या वे दूसरे थे ? ( इसप्रकार ) जगको रक्तरंजित करनेवाली राम और लक्ष्मणकी सेना; लवण और अंकुशके साहसरूपी पवनसे शिशुओं की भाँति उड़ने लगो; धरती, स्वर्ग और पाताल में