________________
एडमचरित
पदुवई। ताव सुसार-सार-तारावइ ताराकइ-समयहो ।
सुरवर-पवर-करि-करायार कराहय-हय-महारहो ॥ ६ ॥ सो जणय-तणय-मय-कम-बमाले। सुग्गीड परिडिङ अन्तरालें ॥२॥ विगु व जिह दाहिण-उसराहूँ। अब्मिट्ट परोपर समर साहूँ ॥३१॥ स्यीयर-वाणर-लणाहूँ। धवलिय-णिय-कुलह श्र-लज्छणा।।४ विजाहर-पुर-परमेसराहँ। एक्कम किरण महारहाहै ।।।। सर-वडण-विद्यारिय-साहणाहूँ। जसिरि-जय दिएन-पसाहणाहँ ॥६॥ संचरइ कहउ जहि जि जहि। रिनु सरहि णितमइ तहि जे तहि १७ जहिं हिं रहवरें भारहाइ गम्पि। इन्दइ-मायामहु हणइ तं पि |6|| जं जं धशुहरु सुग्गीवु लेइ। तं तं रयणीयह खयहाँ जेइ ।।२।।
पत्ता
किं एकहाँ किकिन्धाहिवहाँ हियइरिष्ठयउ ण संपवइ । धणु सम्बही लक्षण-बिरहियहाँ लहर लहड इत्यहाँ पबह ॥१०॥
[१] ॥दुबई।। ताव विहींसपेण धूवन्त-धयवालिद्ध-णयको 1
सूल-महाउहेण रहु वाहिंड' बहुलच्छलिय-कलयलो ॥१॥ 'वल्लु बलु मय माम मणीहिराम । सुर-समर-सहास-पयास-णाम ||२|| मई मुफै वि विहीसणु शE-REE I को सहह तुहारी गर-च' ॥३॥ तं गिसुर्णेवि मन्दोयरि-षणेरु । किम्पु परिट्टि माइ मेरु ।।४।। 'ओसरु ओसरु म पुरउ धादि। उल-विरहित रणु परिहवि जाहि॥५