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________________ पंचहत्तरिमो संधि [५] सुनयना ताराके पति सुग्रीवने जो चन्द्रमाके समान कान्तिवाला था, ऐरावतकी सूड़के समान अपनी प्रबल मुजाओंसे महारथको हाँक दिया। वह भामण्डल और मय के संघर्ष के बीच में जाकर खड़ा हो गया। वह उनके बीच में उसी प्रकार स्थित हो गया, जिस प्रकार उसरे भारत और दक्षिण भारतके बीच विंध्याचल स्थित है। अब उन दोनों में युद्ध छिड़ गया। दोनों क्रमशः निशाचरों और वानरों के चिह्नोंसे युक्त थे। दोनों अकलंक थे और दोनोंने अपने कुल का नाम बढ़ाया था। विद्याधर लोकके उन स्वामियोंने एक दूसरेका रथ खण्डित कर दिया। तीरोंकी बौछारसे सेना ध्वस्त कर दी। दोनों विजयलक्ष्मी और 'जय' को प्रसार दे रहे थे। कपिध्वजी जैसे-जैसे आगे बढ़ता वैसे-वैसे शत्रु तीरोंसे उसे रोकनेका प्रयास करना ! जहाँ कहीं भी बह रथ पर चढ़ता, मय उसपर आघात करता। सुग्रीव जिस धनुषको उठाता, शत्रु उसे नष्ट कर देता। क्या एक अफेले किष्किन्धानरेशके मनकी बात नहीं होगी, लक्खण ( लक्षण और लक्ष्मण ) से रहित सभीके हाथसे धनुष गिर गिर पड़ता है ।।१-१०।। [६] यह देखकर शूल महायुध लिये हुए विभीषणने अपना रथ आगे बढ़ाया। उसमें बहुत कोलाहल हो रहा था। उस रथकी उड़ती हुई पताकाएँ आकाशनलको छू रही थीं। उसने ललकारते हुए कहा, "देवताओंके शत शत युद्धोंमें अपना नाम प्रकाशित करनेवाले हे मय, तुम ठहरो-ठहरो, मुझ विभीषणको छोड़कर भला तुम्हारी यह प्रबल चपेट कौन सहेगा।" यह सुनते ही, मन्दोदरीका पिता मय, सुमेर पर्वतकी भाँति अचल हो गया। उसने कहा “इटो हटो, सामने मत रहो, छल छोड़कर सीधे युद्धसे भाग जाओ, माना कि रावणमें एक भी गुण
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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