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पडमचारत
धत्ता
सर सु लमाणसह बलु गं सयकाले समुइ-जलु
पहें उपहें कह विण माइया । रेलन्तु अउस्म परायड ।। ||
[ .१] सौदपुद्धा हिण महि। पटुषिउ तूउ लें नहि ॥१॥ ग अत्ति अझाटरि पइट्छ । स-जणु सीया-दहट दिटु ।।२॥ 'कहाँ राष्ट्रात दो कार दीनिहिउ पार जग : || पर-गारी-हरण-दयावया तुम्हई ऐवाइय राधणेण ॥४॥ इ घई पुणु घरवइ बजाज घु। उहि व अ-सोहु मरु व अ-लक ॥६॥ परमुत्तम-सत्तु महागुभावु। सुर-भुवणामतर-णिग्गय पयात्रु॥ रग रामालिङ्गण-रस-पसत्त । जसु तिग-समु पर-घणु पर-कलत्तु ॥३॥ लयपङ्कम-मामु महा-पचपछु। सो नुम्हहें आइड काल-दण्डु |||
घत्ता ते सहुँ काई महाहगणिय-कोसु मनसु वि देपिणु । सुहु जीवहाँ उसारि लवणकुस कर करेषिणु' ॥ ॥
[१२] आसीबिस्स-विसहर-विसम-चित्तु । णारायणु हुबहु जिह पनि ॥ १ ॥ 'जा बाहि दृक्ष कि गजिएण। जल एण व जल-परिबज्जिएण । २॥ को वन जाधु कोडणवणु। को असु सासु पयात्रु कवणु ॥३॥ जिह सकहाँ सिह उत्थरहाँ भुम्हें। गहियाउह धिय सपज वि अम्मा