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यासीमो संधि
१६७ कि यहाँसे कोई १६० योजन से भी दूर अयोध्या नगरी है|॥१-६॥
[९] सीता देवीने उन्हें मना किया, वह फूट-फूट कर रो पड़ी और बोली-"राम और लक्ष्मण तुम दोनोंके लिए अजेय हैं; जिनके घरमें हनूमान जैसा सेवक है, जिससे सुर और असुर दोनों डरते हैं, जिसके मुग्रीव और विभीषण अनुचर हैं, उनके साथ युद्धका भार कौन उठा सकता है, जिन्होंने युद्ध में रावणको मार डाला, भला उनपर कौन प्रहार कर सकता है ?" मौकी बात सुनकर, दोनों पाई गई है। लगने कहा, "क्या हमारी सेनामें बल नहीं है। क्या हमारे पास रथ, अश्व और गज नहीं हैं ? क्या हमारे हाथी मजबूत नहीं हैं ? क्या हमारे थियार नहीं हैं, क्या हम आक्रमण करना नहीं जानते ? मौत एक मामूली चीज़ है, उससे कौन डरता है ? तब अंकुशने कहा कि मैं इतना अवश्य दिखा दूंगा कि जिसने हमारी माँको रुलाया है हम भी उसकी मौको रुला कर रहेंगे" ॥१-२॥
[१०] दुन्दुभि बज उठी। कूच कर दिया गया। युद्धके उत्साहसे भरे हुए लक्षण और अंकुश चल पड़े। उनके आगे, एक हजार कुठारधारी थे, एक हजार भयंकर कुदालीधारी थे, पन्द्रह-सौ हाथों में खेवणी लिये सैनिक थे,चौबीस-सौ सैनिक 'झसिय' अन लिये हुए थे, छब्बीस-सौ कुशियसे शोभित योद्धा थे, अत्तीस हजार चक्रधारी सैनिक थे। मदझरते दस लाख गज थे, दस हजार रथ और अठारह हजार घुड़सवार थे । फारकधारी सैनिक बत्तीस लाख थे। चौंसठ लाख थे धनुर्धारी सैनिक । युद्धके लिए हिनहिनाते और वेगसे पूरित अश्वों की एक अक्षौहिणी सेना थी। आवरण सहित, हाथमें उत्तम अस्त्र लिये हुए राजा और उनके अनुचरोंकी संख्या दस करोड़