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पउमचरित
[९] वहहि निवारद दर स्वन्ति । से दुजय कखणराम होन्ति ॥३॥ हणुवन्तु जादं घर करइ सेक। आरकहाँ असु च विभ-दंघ ॥२॥ सुरगाउ विहासणु भिञ्च जाई। को णे धुर धरवि समत्धु ताहूँ ॥३॥ दसझन्धरु दुगुरु जिहउ जहि। को पहरेबि सबइ समउ सेहि' 11४।। है. किसुचि लवणकुस पलित्त । णं विfaot हुआस: घिएँग सित्त॥५॥ "कि आम्हहै बले सामन्त णस्थि । किं श्रम्ह पा-धि रहनुस्य-हस्थि ॥६॥ किं अम्ह । वि िण घारगाई। कि अहहैं करेंहि भ पहरणाइँ ॥७॥ कि अहह साउण हो चाड । सामण्ण-मरण का भयहाँ थाउ' ॥८॥
घत्ता
तो बुधइ मयणकुण जेण रुवाधिय माय मा
'एसडउ ताय दरिसायमि । तहाँ सणिय माय रोवावमि' ॥५॥
[१०] हय भेरि पयाणउ दिपणु सेहि। रग-रस-मरियहि लवणसे हि ॥१॥ अग्गः दस सय कुटारियाहँ। दस दारुण कुदल-धारिया ॥२॥ पण्णारह वेवणि-करयलाह। मसियहँ चउवीस महा-वलाहँ ॥३॥ छबीस कसिय विसोहियाह। बत्तीस सहास िचक्कियाह ॥४|| दस लक्ख गय? मय-णिरुमराहुँ । दस रहहुँ अट्ठारह हयवराहुँ ॥५।। वीरू लक्स फारकिया। घडट्टि पवर धाछियाहुँ ॥६॥ रण-रसियह रहसाकरियाहुँ। अक्साहणि साहणे तूरियाहुँ ॥७॥ परवइहिं फोबिंदस किङ्कराह। साधरणहूँ वर-पहरण-कराहँ ३५