________________
१६२
पडमचरित
लइ लवण तुहारी कणयमाल। मबगस तुहु मि तरङ्गमाल' ||| पइसारवि पुरजरें किउ विवाह। थिउ बजज जय-सिरि-सणाहु ॥५|| तेण वि पत्तीस तणुकमचाउ । णिय-कपणउ दिण्णास-विम्ममा|| सयालदारालहिन्याछ। हल-कमल कुलिस-कलसहिया॥७॥ सामन्तहँ मिलिय अजेय लक्ख । पाइक युझिय केण सङ्ख ॥४॥
धन्ता
जे अलमक-वल पवळ-वरू इरि-बल-वलं हि ण साहिय । ते परवड लवकुसें हिं सवसिकरेषिपशु देस पसाहिय ।।१।।
[ ] खस-सवर-वध्वस्ट-कीर। कर वेर कुरब-सोनीर धोर ||१|| तुम-ब-कम्मोज्ज-मोट । जालन्धर-अषणा-जाण-जट्ट ॥२।। कम्मीरोसीयर-कामस्व । ताझ्य-पारस-काहार-सूव ||३||
पाल-वष्टि-हिण्डिव-तितिर । केरल-कोहल-इलाम-वसिर ॥॥ गन्धार-मगह-मदाहिवा वि। सक-सूरसेण-मर-पत्थिवा वि ॥५॥ एय वि अवर वि किय वस विडूय । पल्ल पट्टीचा मेहिलेय ।।६।। तं पुण्डरीय-पुरवरु पइट्ठ। धुर वनजाधु वइदेहि दिट्ठ ॥७॥ सहि काळ अकलि-ऋछियारएण। पोमाइय वेणि वि पारएण ।।।
घसा
मह एपिपणु सयल महि किय दासि व पेसण-गारी । पर जीवन्तेहिं हरि-वहिं ण तुम्हहँ सिब बहारी ॥९॥