SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बासीमो संधि १६. समर्थ था, हाथोंमें तीर और धनुष थे। उनके रथ हथियारों से प्रचुर मात्रामें भरे हुए थे। उन्होंने सीतादेवीसे कहा, "हे माँ, कहीं मामा न घिर जायें, इसलिए. हम वहाँ जाते हैं।" यह सुनकर दोनों आँखों में आनन्दाश्रु भरकर माँने कहा, "मैं असीस देती हूँ कि तुम ससागर और सपर्वत इस समस्त धरतीका उपभोग करो" ||-|| fx] इस प्रकार माँका आशीर्वाद लेकर, भ्रमरोंसे गुंजित मतवाले हाथियों को वहा में करनेवाले वे दोनों हाँ पहुंचे जहाँ पर अजेय युद्ध हो रहा था। वनजंघ राजाकी उन्होंने जय बोली, और कहा, "हम लोगोंके रहते हुए आपको क्या कष्ट है ? जहाँ अंकुश आग है और लवण पवन है, वहाँ विधाता भी आ जाये तो उस गा गिनती, कि दूसरे की दो बात हो क्या है ।" योद्धाओंको चकनाचूर कर देनेवाले दशरथके पुत्र के पुत्रोंने राजा वनजंघको धीरज बैंधाया। अपना रथ हाँककर उन्होंने दुन्दुभि बजा दी। कोलाहल करती हुई सेनाएँ दौड़ी, बलसे उत्कट सेनाएं भिड़ गयीं। एक दूसरेपर उन्होंने हाथी दौड़ा दिये। तस्यारोंके आघातसे शत्रुओंके सिर ऐसे । लग रहे थे, मानो धूल और रक्तकी महानदीमें अश्वोंके सिर हो। राजा पृथु खेल-खेल में लवण और अंकुशसे इस प्रकार जाकर भिड़ गया, मानो भाग्यसे महागज हड़बड़ीमें सिंहसे आ मिड़ा हो ॥१-|| [५] जस अवसर पर, युद्ध में निरंकुश लवण और अंकुशने राजा पृथुको ललकारते हुए कहा, "अरे कुलशील विहीनोंसे क्यों पराजित होते हो; हटो हटो, जैसा कि तुमने दूतसे कहा था।" यह सुनकर गजा पृथु उनके चरणों में गिर पड़ा, और बोला, "हम जैसोंसे आपको नाराज नहीं होना चाहिए । लवण
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy