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१३.
पडमचरित रम-रामालिनिय-विग्गहहि । पहरण-पदहस्थ महाराहि ॥७|| 'बेबिजह माएँ ण मामु जाव । जाएबउ अम्महिं सेरथु ताव' ॥८॥
घत्ता
तो वोलाविय चे वि जण गप्पिएँ वरिसंसु-विमीसएँ । 'स.गिरि स-सायर सयक महि भुझेज महु भासीसएँ ॥९||
भासीस ल ऍवि विधि वि पयः । अलमल-वल-मयगल-मइयवह ॥१॥ गय तत्त जसह रघु साधु। पारि' अरव बालाजधु ॥२॥ 'भम्हें हिं जीवन्ते हि दुक्नु कवणु । जाहिं अङ्कसु हुअवहु लवणु पक्षण ॥२॥ का गणण तस्थु विहि-पस्थिवेण । भवरेण वि पवर-णराहिवेण' ॥४॥ पतु धीवि भड-कामहणेहि। इससन्दण-णवण-णन्दणेहि ॥५॥ रहु वाहिउ ताई वाइपाई। किड कलपलु सेपण. धाइमाई ॥१॥ अटिमहर घसई पलुन्धुरार। अवरोप्पर चोइथ-सिन्धुराहैं ।।७।। सरवर-सहाय-परिसिराई। रय-हिर-महाण-हरिसिराई ॥८॥
মৃধা पिहु-पस्थिड लवणकुसे हि इलएँ जें परम्मुहु लग्गउ । जावह प्रत्ति शरपियड विहिं सीह हि मत्त-महागा ॥१॥
तहि अवसरै समर-णिरसे हिं। पचारिउ पिड लवणासहि ॥१॥ 'कुक-सील-विहूणहुँ बसिय केम | पलु पलु वूवागम चषित बेम' ॥२॥ पिहु-पथिट पक्षणेहि पनिड ताई। 'कलेबर भाउ भम्बारिसाहँ ॥१॥