________________
बासीमो संधि [२] चूंकि इसे बहुत बड़ी चिन्ता हो गयी। इसलिए उसने पृथ्वीपुरके राजा पृथुके पास दूत भेजा । दूतके माध्यमसे उसने पूछा कि, माथु राणी, अमृतसरे उमस अत्यन्त सुन्दरी कन्या कनकमाला दे दे। परन्तु दूतके वचन सुनकर राजा ऐसा चिढ़ गया मानो फड़कते फनोवाला नागराज हो। उसने कहा-"जिनके वंशका पता नहीं, जिनकी न कीर्ति है और न शील, भला ऐसे निर्लजोंको अपनी लड़की कौन देगा।" राजाके खोटे अक्षरंसे प्रताडित दूत बहाँसे वापस आ गया, मानो दण्डोंके आघातसे साँप फुत्कार कर उठा हो। उसने जाकर लवण और अंकुशके मामाको बताया कि किस प्रकार राजा पृथुने अपनी कन्या देनेसे मना कर दिया है। यह सुनकर वह एकदम भड़क उठा। उसने कूचकी भेरी बजवा दी। घेरा डालकर उसने राजा पृथुके ऊपर आक्रमण कर दिया। इसी बीच, राजा पृथुके पक्षपाती राजा व्याघरथने युद्ध-व्यूहकी रचना कर लो और वह युद्ध करने के लिए आगे उसी प्रकार स्थित हो गया, जिस प्रकार मेघोंको अवरुद्ध कर इन्द्र स्थित हो जाता
[३] व्यानरथ और वनजंघ आपसमें एक-दूसरेसे युद्ध में भिड़ गये। दोनों एक-दूसरेके प्रति अलंध्य थे। बहुत दिनों तक वे एक-दूसरेपर प्रहार करते रहे। दोनोंने एक-दूसरेको शक्तिका सार जान लिया। इतनेमें पुण्डरीकपुरके राजा वनजंघने व्याघ्ररथको पकड़ लिया। यह देखकर विशालकाय राजा पृथु कुपित हो उठा, वह सैकड़ों सामन्त योद्धाओं के साथ यहाँ आया। इस ओर भी सीताकी जयके साथ अजेय दोनों कुमार (प्रसिद्धनामा लवण और अंकुश ) रेणके लिए सधत हो उठे। पनका शरीर युद्धलक्ष्मीका आलिंगन करने में