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मासीमो संधि
लो तुम्हारी कनकमाला, और मदनांकुश तुम भी ली तरंगमाला।" उसने दोनों का अपने महानगरमें प्रवेश कराया
और कन्याओंका पाणिग्रहण करा दिया। वनजंघ अब पूर्ण ऐश्वर्यसे मण्डित था। उसने भी अपनी बत्तीस विलासयुक कन्याएँ उन्हें दीं। वे कन्या सभी अलंकारोंसे शोभित थीं, और उनके शारीरपर हल, कमल, कुलिश और कलश आदिके सामुद्रिक चिह्न अंकित थे । लाखों सामन्त आकर उनसे मिल गये, फिर पैदल सैनिकोंकी तो संख्या पूछना ही व्यर्थ है । जो प्रबल बली शत्रु राजा राम लक्ष्मण द्वारा पराजित नहीं हो सके थे उन्हें लवण और अंकुशने बलपूर्वक अपने वश में कर लिया ॥१-२॥
[३] खस, सव्वर, बव्वर, टक्क, कीर, काबेर, कुरव, सौबीर, तुंग, अंग, बंग, कंबोज, भोट, जालंधर, यवन, यान, जाट (जट्ट), कम्भीर (कश्मीर), ओसीनर, कामरूप (आमाम), ताइय, पारस, कल्हार, सूप, नेपाल, वट्टी, दिण्डिव, बिसिर, केरल, कोहल, कैलास, बसिर, गंधार, मगध, मद्र, अहिव, शऋ-सूरसेन, मरु, पार्थिव, इनको और दूसरे भूखण्डोंको अपने वशमें कर, वे दोनों वापस अपनी धरतीपर आ गये। उन्होंने पुण्डरीक नगरमें प्रवेश किया, वनजंघकी स्तुति की और तब सीतादेवीके दर्शन किये। इस अवसर पर असमयमें भी लड़ाई करा देनेवाले नारद महामुनिने भी उन दोनोंकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा, "ठीक है कि तुमने बलपूर्वक सब धरती जीत ली है
और उसे अपनी आशाकारिणी दासी बना ली है, परन्तु राम और लक्ष्मण के जीते जी तुम्हारी सम्पत्ति बढ़ी मालूम नहीं देती ॥१-॥