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________________ नयापी सन्धि देवयुद्धसे भी भयंकर, चन्द्र और चकके नामोंसे अंकित, लवण और अंकुश, युद्ध में राम और लक्ष्मणसे जा भिड़े। [१] लवण और अंकुश दोनों जवान हो चुके थे। दोनों यमको सता सकते थे, दोनों कलाओंका अभ्यास पूरा कर चुके थे और दोनों अपनी कलाओंसे निर्मल आकाश चन्द्रको भाँति थे मानो आशंकासे मुक्त शत्रुरूपी गज़पर सिंह हो। विशाल कंधोंवाले वे रणभार उठाने में समर्थ थे। सेतुबन्धकी भाँति वे दोनों गुणसमूहसे युक्त थे। धरती धारण करनेवाले दुर्धर धरतीके राजा थे, दोनोंने जिनेन्द्र भगवानके चरणोंकी वन्दना की थी। दोनों अपने स्वामीकी रक्षा करनेवाले और मित्रोंको शरण देनेवाले थे | धन्दीगृहों और गौशालाकी उन्होंने रक्षा की थी। दोनों पृथ्वीके अलंकार थे, और दोनों पृथ्वीको अलंकृत करना चाहते थे। उनका प्रताप दसों दिशाओं में फैल चुका था। रामके ही अनुरूप वे दोनों रमणियों के लिए सुन्दर थे। वे जन माता और पिताके लिए आनन्ददायक थे । दोनों ही प्रबल शत्रुओंकी नगरीमें त्रास उत्पन्न कर सकते थे । मुखचन्द्रकी ज्योत्स्नासे उन्होंने चन्द्रमा तकको आलोकित कर दिया था। वे दोनों ऐसे लगते थे मानो कामदेव ही दो भागोंमें बंटकर मनुष्य रूपमें अवतरित हुआ हो । तब मामा वाजंघके मनमें यह चिन्ता हुई कि इन दोनौका विवाह किससे करूँ ॥१-१०॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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