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________________ एकासीइमो संधि भाई हूँ।" इसपर देवोंने राजा वनजंघकी सराहना की । सीता देवीका सौन्दर्य देखकर त्रिभुवनमें कौन था जिसका मन धुन्ध न हुआ हो। परन्तु एक बानगी का जोन में महाका और गम्भीरतामें समुद्र था ।।१-१८॥ १५] उसने व्रत और गुणोंसे सम्पन्न सीता देवीको ढाढ़स बंधाया और डोलीमें बैठाकर उसे अपने घर ले गया। उसके अपने पुण्डरीकनगरमें प्रवेश करते ही बाजारों में नयी शोभा कर दी गयी। उसने मुनादी द्वारा सीतादेवीको अपनी बहन घोपित किया, और इस प्रकार लोगोंके मनमें रत्तीभर भी शंकाका स्थान नहीं रहने दिया । वहाँ सीतादेवीके लवणअंकुश नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। दोनों ही दीर्घायु और शुभ लक्षणोंसे युक्त थे। सीतादेवीके लिए वे इतने शुभ थे मानो पूर्व दिशाके लिए सूर्य और चन्द्र हो। वे बड़े हुए। उन्हें बड़े-बड़े अस्त्र चलाना सिखाया गया। उन्होंने व्याकरण आदि अनेक शानोंका अध्ययन किया। सुन्दर कलाओं में निपुणता प्राप्त की। दोनों सुमेरु पर्वतके समान अचल थे। उनके प्रभाव से सब शत्रु रुक गये, मानो वे रघुकुल रूपी भवनके दो नये खम्भे हों। वे राम लक्ष्मणसे भी अधिक युद्ध में समर्थ तथा सहर्ष साहंकार और कृतार्थ थे। लवण-अंकुश दोनोंने सर्पकी भाँति शत्रुओंको दण्डसे साध्य कर लिया। उन्होंने बापकी दासीकी तरह धरतीको अपने हाथोंसे चाँपकर अधीन कर लिया ॥१-१०॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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