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पल मास्ट
लायण्णु णिऍचि सोयहें तण गिरि धीरें सामरु गहिरिम
धत्ता सिटुअणे कासु ण खुहिउ मणु । जजघु पर एक्कु जणु ॥१०॥
[१५] ॥ जंभेट्टिया ॥ मम्मीसेप्पिणु पय-गुण-थागणं ।
णिय परमंसरि सिविया-जाणेणं ॥१॥ पुण्डरोय-पुरवरु पहसन्ते । इह-सोह णिग्मविय तुरन्ते ।।२।। सस मणेषि पदहड वेवाविध। जणु बासका-थाणु मुभाविउ ।।३।। सहि उप्पण्ण पुत्त लवणकस । लक्षण-लक्वतिय दोहाउस ॥४ सीयारविहें णयण-सुहकर । पुम्ब-दिसिहें णं चन्द-दिवायर ।।५।। विचि-गय सिक्खविय महत्था । वापरणाइ-अणेयह सस्थई ।।६।। सयल-कला-कलाव-कवणीया। मन्दस्-मेरु णाई थिय वीया ।।। सेहि पहावें तर्हि रिड थम्भिय । रहुकुरू-मवण-खम्म उडिमय ।।८॥ ल-रहस सावळेव स-कियस्था । लक्षण-रामहुँ समर-समस्या ।।९।।
पत्ता रिउ लवणसें हि णिस्कुसें हिं दण्ड-सज्य किड गाई अहि । पप्पं वि प्पिको दासि जिह लय स य म्भु व लेण महि ।।१०॥