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पउमचरिड
दम-सीर-कुस-कास-मुअयं । पक्षण-पठिय-तरू-पपण-पुअर्य ।।।। विड़व-णिहस-पुष्णुग्ध-मच्छियं । किमि-पिपीलि-उदेहि-विच्छिचं ||५|| हीरखुण्ट-कण्टय-णिस्न्तरं । सिल-खड़क-पस्थर-किसम्धरं ॥६॥ तहि महा-बने परम-दारुणे। सोह-पय-गय-सोनियारणे ।। मच्छहल-पइउल-भीसणे । सिव-सियाल-अलियल्लि-मी?णी)सोट मुक तेन्धु मूएण जाणई । 'महु दोसु रहुवइ ज जाणई ॥९॥
घता
वरि यि हालाहउ मश्वियउ वरि जम-लोउ गिहालियउ । पर-मण-भायणु बुह-णिलड सेवा-धम्मु ण पालिय उ ।। १० ।।
[1] ।। जभेष्टिया ।। दुप्परिपाल जीविय-संसट
आण-बच्छित विक्रिय-मंस ।।१।। से का-धम्मु होइ दुज्जाणउ। पहु ऐक्व ड कग्य-समाणउ ||२|| मोयणे सयणे मन्ते एक्कन्तएँ। मण्डल-जोणि-महण्णव-चिन्तएँ ॥३॥ जहि अस्याणु णिवम्धइ रागढ। तहि पाइकु जइ वि पोराणड ॥४॥
उ वइसणउ ण वह जीवणु। ण करवर कयावि गिट्टीवणु ॥५॥ पाय-पसारणु हत्यप्फाला। इसालबाणु समुश-णिहासणु ॥६॥ हसणु मसणु पर-आसण-पेल्कणु । गत्त-मनु मुह-जम्मा-मेहरूणु ॥७॥ णड णियह ण दूर वइसेक्ड। रस विरस-विसु जाणेवस ॥८॥ अग्गल पच्छल परिहरिएवी। जिह तुसह सिंह सेव करवी ॥९||