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एक्कासीइमो संधि
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चढ़ा लिया। कौशल्या और सुमित्रा शोकसे व्याकुल होकर रो पड़ीं। नगरकी स्त्रियाँ भी उत्कंठित होकर कह उठी, "दुष्ट दैवने यह कैसा वियोग कराया। दुष्ट चुगलखोरों के कपट से घर नष्ट हो गया। रामचन्द्र ने धिक्कार योग्य अयुक्त किया। उस मनुष्य जन्मको पाकर क्या करें, जिनमें प्रिय-वियोगकी परम्परा-सी बँध जाती है। इससे अच्छा तो यह है कि हम किसी वनकी लता बन जाय, कमसे कम उसका वृक्षसे वियोग तो नहीं होता"॥१-१०||
[Eथोड़ी देरमें अश्व अपने रथको वहाँ ले गये, जहाँपर भयंकर घना जंगल था। उसमें सज्जन, अर्जुन, धाय, धव, धामन, ताल, हिंताल, ताली, तमाल, अंजन, इमली, चम्पक, आम्र, चवि, चन्दन, बाँस, विष, बेंत, बकल, वट, वन्दन. तिमिर, तरल, तालूर, ताम्राक्ष, सिंभली, सल्लकी, सेल, सप्तच्छद, नाग, पुनाग, नारंग, नोमालिय, कुंद, कोरंद, कपूर, कक्कोल, सरल, समी, सामरी, साल, शिनि, शीशा, पाडली, पोडली, पोफली, केतकी, वाहव, माधवी, मडवा, मालूर, बहुमोक्ष, सिन्दी, सिन्दूर, मंदार, महुआ, नीम, कोसम, जम्बीर, जामुन, खिंखणी, राइणी, तोरिणी, तुम्बर, नारियल, करीरी, करंजाल, दामिणी, देवदार, कृतवासन आदि वृक्ष थे। जो जैसा कर्म करता है, उसका उसे वैसा ही फल मिलता है। यदि ऐसा नहीं है, तो फिर, सीता देवी को राज्य से हकालकर दैवने अटवीमें कैसे निर्वासित कर दिया ।।१-१०॥
[१] सती होते हुए भी उसे लांछन लगा दिया, इससे साफ़ है कि सबको पूर्व जन्ममें किये कर्म भोगने पड़ते हैं । सारथिने उस भयंकर अटवीमें सीतादेवी को छोड़ दिया। उसमें भयंकर डास और मच्छर थे, सिंह, शरभ, मगर और सुअर थे। नाग, बकुल, काक, उल्लू, हाथी, अजगर और दबके पेड़