________________
१४६
पउमचरित धाहाविड कोसकएँ सुमित्तएँ। सुप्पहाएँ सोमाउर-चित्तएँ ॥७॥ णायारया-यणेण उकण्ठे । 'केव विभोड्य दइबें दु? ||4| घरु विण? खल-पिसणहुँ छन्दें। धि-धि अजुतु विज राहवचन्द ।।१।।
कि माणुस-जम्में लन्तुएंण इट-विओय-परम्परेण । परि जाय णारि वणे वेल्लनिय जाणवि मुचा तरुवरण' ॥10॥
1 जंभेष्टिया ॥ ताव तुरहँहिं पिउरहु तेसहे।
____ वियण महारई दारुण जेत्त है ।।३।। जत्थु समजुणा धाइ-श्व-धम्मणा । ताल-हिन्ताक-साली तमाळक्षणा॥२॥ चिचिणी चम्पयं चूअ-चवि चन्दणा। बंसुविसु वक्षुलं वउळ-कर-पदणा) तिमिर-तरु सरल-तालूर-तामिच्छयं । सिम्बली सल्ला सेलु ससच्छय am णाग पुगणाग-णारङ्ग-पोमालियं । कुन्द-कोरण्ठ-कापूर-ककोलयं ॥५॥ सरल-समि-सामरी-साल-सिणि-सीसवं । पासला फीफली केनई वाहवं ॥६॥ माह वी-मड-मालूर-वहुमोकायं । सिन्दि-निन्दर-मन्दार-महुरुपरण्यामा णिम्व-कोसम्ब-जम्बीर जम्बू वरं । ग्विाङ्क्षणी राहणा तोरणा तुम्बरं ।।८।। णालिकेरी करीरी करनालयं । दाहिनी देवदार कवासणं ॥५॥
घत्ता जं जेण जेम्म कम्मउ कियउ तं तहाँ तब समावइ । कि रहीं टाले वि जणय-सुभ दह णिज्नइ त अडइ ॥१०॥
[१०] ।। जभेष्टिया ।। सहॅ वि होन्ति हे लग्छणु काइउ ।
सम्बहाँ विकसइ कम्मु पुराहत ॥१॥ जत्थ इंस-मसयं भयङ्करं । सोह-सरहयं ना-सूय ॥२रा) णाय-णडलयं कायलोलुहं । हस्थि-अजबरं दर-महोई ॥३।।