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पउमचरिड णिहि व पयत्त परिक्षेची । गुलहिय-सीरिव कहाँ बिण देवी': । श्रप्पाणेण जें अप्पड घोहि। 'परि गय सीयम छोउ विरोहिउ॥१।।
पत्ता णिय-गेह-णिबद्ध आवइ जइ वि महा-सइ महु मण्हों। की फेडेंवि साइ लमजणउ जं घरै णिवमिय रावणहाँ' ॥१०॥
। जंभटिया ॥ ताघ जण एणु णाई हुभासणु ।
घिण व सिसड शत्ति पलिलउ || कदिन उ सूरहामु करें जिम्मलु । विन-विलासु जलगु जालुजल ॥२॥ 'तुजण मइयवटु हउँ अच्छमि। जो जम्पइ तहाँपलड समिच्छमि ॥३॥ जं किउ स्वरहों महा-स्खल-खुरहीं। जंकित रणें रावणको रउदहाँ ।।३।। तं करेमि दुजण, हयासहँ। कुद्धिल-भुङ्गा-अझ-सङ्कासह 141 हो घल्लावह सीय महा-सइ। णाम-ग्गहणे जाहे दुहु प्यासह ।।६।। जा सुरवर हि पदमय बुञ्छ । जा पसा वसुमह पश्चाई ॥७॥ जाहे पहावें रहु-कुछ गन्दा। पकयहाँ पिसुणु जाउ जो णिन्दा ॥८॥ आहे पाय-पंसु वि वन्दिज्वइ । वाहे कलकु फेम लाइमह ॥९॥
घत्ता जो रूसाइ सीप-महासइहें सो मुहु अग्मएँ थाउ खलु । तहाँ पापही विरसु सन्ताहाँ लुमि स-हत्य सिर-कमलु' 11३०॥