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पउमचरित
लोउ सहाा दुप्परिपाल । बिप्सम-विसु पर-लिए-णिहालउ ॥१॥
महाग र पशु-गुणविर अन गुण-गारउ ॥५॥ कह सइ जइ परवइ गउ माइ । अवसे कि पि कलङ्क लावइ ॥६॥ होह हुआपणो न्च अविणीयउ। गिम्भु व सुह अणिच्छिय-सोयड ।। ।। चन्दु व दास-गाहि सह ख-स्थउ । सूरु व कर-चण्हउ दूर-स्थउ ||॥ वाणु व लोह-फलु माण-मुण्ड। विन्धणसीला धम्मही चुका ॥५॥
घत्ता जई कह वि पिगम होइ पर तो हरिय-हदहें अणुहरइ । जो काल देइ लु दुबइ तान जें जोविउ अपहरई ।।१०।।
।। जंभेष्टिया ॥ अह खल-महिलाहे गह जिह कुडिल हे ।
__को पत्तिाइ जन वि मरिजइ ॥१॥ अण्णु गिएइ अणु अणु बोलावह । चिन्तइ अषणु अण्णु मणे मारङ् ॥२॥ हियबई णित्रसह विसु हालाहलु । भमिउ वनणे दिदिहें जमु केवल ॥३|| महिला तणड चरिउ को जाणइ । उभय-ताइँ जिह सणइ महा-गइ ।।।। चन्द-रू व सम्बोपरि वकी। दास-गाहिणि सर स-फलको ॥५।। गव-विजुलिण्य व चाल-देही। गोरस-मन्थ व कारिम-पोडी ॥६॥ वाणिय फल कवशिष-माणी। भाव गरुासका-याणी ॥