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पउमचरित
घत्ता , सहि तह उबवणे पहसरेंषि जय-जय-सारे पुज्ज किय । जिद्द जिम्वर-धम्महाँ जीव दय जाणइ रामहीं पा थिय ।।१।।
।। जंभेटिया || नाव विणीयह फन्दइ मीयो ।
दुमा ५. नाहि को गु: ।। 'फुरवि आसि पहूँ पर दुग्गेज्मह । तिष्णि मि णीसारियई भउझहूँ ॥२॥ थियइँ विदस दसु ममन्त।। दुस्सह-दुक्रव-परम्पर-पस ई ॥३॥ रण-रक्तसँण गिलेंचि उनिगलियईं। कह वि कह विणिय-गोत्तहो मिलिय। एवहि एउ प्य जागहुँ इक्वणु। काइँ करेंसइ फुरवि अ-लक्षणु' ।।1 तो पत्थन्तर साइशारे ।
भाइय पय असेस कूवारें ।।६।। 'अहो रायाहिराय परमेसर । णिम्मल-रहकुल-णहयस-ससार ७॥ दुश्म-दाम-देह-भय-मपण तिहुअग-जण-मण-णयणाणन्दणा॥८॥ जइ अवराह पाहि धर-धारा । तो पट्टणु विष्णवह महारा॥५||
धत्ता
पर-पुस्सुि रमेवि दुम्महिलउ देन्ति पलुसर पह-यणाही । "कि रामु ण मुञ्जह जय-सुअ दस्सुि वसें वि चरें रामणों" ॥३०॥
[४] 1। जभाया । पय-परिवाएणं मोग्गर घाए ।
में सिर आहउ रहुवह-णाहर || चिन्तइ मजलिय-वयण-सरोरुटु । सुह लिहन्तु उन्तु इंट्ठा-मुह ।।२।। 'विणु पर-तत्ति को वि ण बीवइ । सइँ विगढ़ अमाई उदीवइ ॥३||