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एक्कासीइमो संधि
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रसोंका उपभोग करने में गहरी अभिरुचि रखते थे और जी शरीरसे रमणियोंके रमण में निपुण और समर्थ थे। सीता देवी निरबोप भाव से परमार्थको जानती थीं, फिर भी उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर रामसे पूछा, "हे ग्वामी, हे स्वामी, जगको मोहनेमें समर्थ, आजकी रातमें मैंने एक सपना देखा है कि पुष्पक विमानसे गिरकर एक सरह (हाथीका बच्चा) जोड़ा मेरे मुंह में घुम गया है । यह सुनकर सजनोंके मन और नेत्रोको आनन्द देने वाले रामने बिलासके साथ हैसकर कहा, “परमेश्वरी, शत्रु और श्रेष्ठ नररूपी गजोंके लिए सिंह के समान दो वीर पुत्रोंको तुम जन्म दोगी, और जो सरह युगल गिर गया है, उसका अर्थ है कि वे दोनों मेरे इदयको जीत लेंगे।" उसके बाद थोड़े ही दिनों में सीता देवीके अंग भारी हो गये। और मानो वनदेवीने आकर, हे सखी चलो', यह हाँक मचा दी ॥१-१०||
[२] रामको गृहिणो, सीता, जैसे वनमें हथिनी ! मल्हाती हुई और क्रीड़ाएँ करती हुई। नरश्रेष्ठ रामने पूछा, "हे देवी यताओ तुम्हें कौन सा दोहला है," | यह सुनकर सीता देवीका मन खिल गया । दाँतोंकी चमकसे आसमान चमक उठा । हँसते हुए वह बोली,"मैं एकमात्र जिन भगवान की पूजा करना चाहती हूँ जो धवल निर्मल और पवित्र हैं।" तब रामने अपनी प्रिय पत्नीकी इच्छाके अनुसार रामके (नंदनवन में) जिन भगवान्की सानंद परम पूजा की | नंदनवन में बड़े-बड़े वृक्ष थे, ताल तमाल और ताली वृक्षोंसे सघन, चन्दन, मोलनी और तिलक पुष्पोंसे आकुल, सुन्दर कोयलोंकी कल-कल ध्वनिसे संकुल । दक्षिण पवनसे जिसमें वृक्ष आन्दोलित थे, और घूमते हुए भौरांकी झंकारसे मनोहर । जिसमें श्वज, तोरण और विमानी से मंडप बने हुए थे, नृत्यकारों ने अपने नृत्यसे समा बाँध रखा था। ऐसे