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पउमचरित एकहि दिवस मोहर-गारी। पार्म परिट्ठिय सीय महारी ||३|| जाणिय-गिरवस-परमाथी। पमण पणय-क्रियालि-हस्थी ॥४॥ 'साह माह जग-महिप्प-सन्निहि। मुहणार अजय दिटर म, तिkि ॥..|| पुष्प-विभागहों पडेवि पहिउ । सम्ह-जुअलु मह वपणे पट्टङ' ॥६॥ तो सज्जप-मण-गयगागन्दें। हसिउ स-विम्भमु राहवचन्द ।।७।। 'दुइ होसन्ति पुत्त परमेसरि । परणार-वरणर-बारग-कैपरि ।।१॥ शावर एकु महु हियएं चयिउ । सुन्दरि सरह-जुअल जं पाइयउ ||९||
घत्ता
तो अहि दिन हि थोवा हि सीयङ्ग, गुरुहाराई। 'महि धासर' गवण बंद पट्टवियई हक्काराई ।।१०।।
[२] महिया।। रबइ-धरि पिया मिरवणे करिणिया ।
मल्हण-लीलिया कीलण-सोलिया ॥३॥ वल बोललाइ णस्वर-कसरि । 'को दोसलउ अक्म्बु परमेसरि' ॥२॥ बिहसिय त्रिमिय-प-य-चपणी । दन्त-दित्ति-उन्नाशय-गयणी ।।३।। 'पल धवलामल कंत्रल-बाहहों। जाणमि पुज स्यमि जिणणाहहो ॥४॥ पिय-बयणण तण साणन्दें। परम पुन शिय राहव-चम्दं ।।५।। दिग्व-महिन्द-दुमय गन्दण-वणे । सरल-तमाल-ताल-ताली-घणें ॥६॥ चन्दण-घउल-तिळय-कुसुमाउलें। कल-कोइल-कुल-कलयल-सद्कुले ||७|| दाहिण-पवणन्दोलिय-तरुवरें। भमिर-ममर-द्वार-मोहर ॥६॥ धय-तोरण-विमाण-किय-म । केन्द-मन्द-सन्दिन-तणावे ।।९।।