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________________ १३४ आयरियहुँ केश सतसरा । सत्तीवशाय णमोक्करणा । इ पञ्चतीस परमक्खरहूँ । पउमचरिउ जे परमाचार-विचार- परा ॥४॥ साहुहुँ मव-भय-परिहरणा ॥५॥ सुब- पारावार - परस्परहूँ ॥ ६ ॥ सिचरि-कवाद उग्घा ॥७॥ कुञ्जरहों में उप्परें कालु किउ ॥ ८॥ विस-चिसम-विसय-पिलाउ है । महु सुहइ रेन्तु भगन्तु थिय । घन्ता कुसुम सुहिं विसजियइँ किट साहुकार । मरस भुञ्जन्तु उ स कुमार || ९ | [ ८१. एकासीइमो संधि ] ऋणु सेविड सायरु छक्तियउ हिउ दसाणणु रतएंग अवसान का पुणु राहवेंण बल्दिय सीप विस्तऍण ॥ [1] उन् ॠण से सेण चिन्ते । तें तें तें चित्तं ॥ राह-चम् पाण-पियल्लिया सेण तेंग सेण चित्तें । जिह वण घल्डिया तें तें तें विलें ॥ जंभेडिया ||१|| अमिय-रोम मोगासस ॥ २ ॥ रामहों रामाचिनिय गत्तहीँ ।
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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