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पड़मचरित
महा-item: अ-लया मराठा समुदा करिन्द्रण ओहाभित्रो वारणिन्दो। कुमारेग ओहामिओ माहुरिग्दी ।।८.
पत्ता महु णाराय-कसन्तरिउ रुहिराणु गयवरें। प.ग्गुणें फुल-पलासु जिह लक्खिाइ गिरिवर ।।९।।
[१२] भवसा कालु अं दुक्कियउ। जं रहु-सुर जिणत्रि सकियउ ।।३।। जं सूल ण दाहिण-कर चडि। जं पुत्तही भरणु समावडिउ ।।२।। सं परम-विसाउ जाउ महुहें। 'मणि किय पुज्ज निहुअण-पहुह।।३।। पञ्चेन्दिय दुरम दमिय पवि। धम्म-किय एकविण किय कवि।। मई पावें पावासत्तऍण। णउ बन्दिय देव जियन्तऍण || संजोउ सन्नु को कहाँ तणा। गिफल जम्मु गउ मा तणउ ।।३।। करि एव हि सल्लेहणु करमि। वन पञ्च महा-दुन्दर धरमि' ॥७॥ ता एम भणेधि सिन्धु घिउ । स. हाय केमुप्पाछु किउ || ८ ||
घत्ता 'एक जि जीउ महुसगड सम्बही परिहारउ । रणु में सबोबणु झिगु सरणु मयबरु सन्यारउ' ॥५॥
[11] जे मम्ब-जणहों सुह-वसुहारा। पुणु घोसिन पञ्च पभोकास ।। १॥ भाहन्त हुँ केरा सत्त सरा। जे सन्त्रहँ सोक्खहँ पढमयरा ।।२।। पुणु सिन्दहुँ केरा पञ्च सरा। जे सासय-पुरबर-सिन्दिपरा ॥३॥
जस