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पउमरिस
घत्ता चिहि मि पिरन्तर-चावरण सर-जालु पहारह। विसही सम्यहाँ मझे थिउ घण-सम्बर वइ ।।९।।
[१०] अवरोप्परु वाणे हि छाइयउ । अवरोरु कह विण घायड़ ॥१॥ भवरोप्पर कदमई तादियई। भवरोप्परु चिन्धर फादियई ।।२।। अपोप्पर छत्तई किण्णाहूँ। अबरोप्परु श्रङ्गर मिण्णा ॥१॥ प्रवरप्पा यह सरासणई। जल-धलई विजायई स-चणइ ।।३।। भवरोप्पर साह णिविय। स-तुरङ्गम जमउरि पट्टविय ॥५॥ अवरोध खण्टिय पवर रद्द । थिय मत्त-गहन्द हि दुविसह ।।३।। ते महुर-भाराहिव-ससुहाग। णं णहयल-ललण स-घण व ॥१॥ णं कसरि गिरि-सहरसह कांस्य । रामपाराम सभावस्य litil
घत्ता
वे वि स-पहरण सामरिस करिव हि चलगा । मलय-महिन्द-महाहा हि जेवण-यक लगा ।।९।।
[१] समुदाइया सिन्धुरा जुलू-लुद्धा। चलुत्ताल-दुकाल-काल व कुद्धा ॥१॥ विमुकुसा उम्मुहा उद्ध-सोपडा । स सिन्नूर कुम्भस्थला गिल-मण्डा।।२॥ मयम्महि सिप्पन्त-पाय-प्पएसा । मिलन्सालि-माला-गिरन्धीक्रयासार विसाणप्पहा-पण्डुरिजन्त-बहा। बल्लायावली-दिग्ण-सोह व महा। चलन्तेहि सञ्चालिी संस-गाओ । म मन्तहि एकमामिओभूमि-मानी।।५।। गिरिन्दा समुदावलीमाव जाया। गइन्दसु तेसुटिया चे वि राया ॥६॥