________________
पउमचरित
[२] ॥ दुबई ॥ दुद्दम-देह दो वि दूरुजिमय-वणुहर पवर-विकमा ।
जणिय जणाणुराय जस-लालस स-रहस सुर-परकमा ॥१॥ पहरन्ति परोप्परु पहरणेहि । दणु-इन्द-बिन्द-दप्पहरणेहिं ॥२॥ खलबल-गह-यल-उछायणेहि। तटि-सामस-तषणुप्पायणेहिं । गिरि गारुड-पाहण-पायवेहि। घारणा-भग्गेयहि वायवेहि ।।१।। जो अहिमह-दहिमुह-माउरोग। उसिमय-धुय-धयमालाडळेण ||| कवणगिरि-सारस-महारण । सुर-वाय-किणतिय विगहेण ।।६।। पजालियकोव-शुभासगे। आर्यादय-ससर-सरासणेण ।७।। बम्दइ-कुमार-मायामहेण । हणुवन्त-महन्दउ लिण्णु तेण ॥४॥ तो रावण-उबवण-महणेण । चक-मणही पवहीं गान्दणेण॥।॥
पत्ता
स-तुरा स-सारहि स-घउ र हणे वि स हि सब-खण्डु का। गह-लसण-करणे हिं उप्पऍवि अण्णाहि सन्दणे चहिउ मह ।।१०।।
[३] ॥दुवाई।। रण-भर-धवल-धूलि धूसरिय-धयवदाढोम-डम्बरो।
पक्कल- मि-गिग्योस-पिरन्ता-वहिरियम्वरी ॥१॥ सो वि परण पुत्तेय सन्दगी । जणिय-बन्दि-मन्दाक्षिणम्दणो ॥२॥ महिहरो व तद्धि-बडण-ताद्धि भो । दारुणयन्देश पारिभो ।।३।। तो तहिं गिएऊण णिय-भड ! भग्ग-रहबरं छिपण यवा ॥४॥ दह मुहेण माया-विणिमिओ। करि विमुक-सिकार-तिम्मिश्रो ।।५।।