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पदाचरित
पचहत्तरवों सन्धि यम, धनद और इन्द्र के लिए भयंकर, नागलोक सहित संसारमें झगड़ा मचानेवाले रावणसे रामको उसी प्रकार भिडन्त हो गयी जिस प्रकार उत्तरायणसे दक्षिणायन की।
[१] वह युद्ध अत्यन्त भयानक था। ऊँचे-ऊंचे अश्वोंके तीखे खुरोंके आघातसे उठी हुई धूलसे ज्वालामाला छूट रही थी। जो युद्ध दुर्दमनीय हाथियों के दाँतोंके और अग्निशिखाके समान विद्युत्प्रभासे भास्वर था। जो युद्ध दर्पसे उद्धत योद्धाओंसे संकुल एवं अश्वोंके फेनकी नदीसे अत्यन्त दुर्गम था । हाथियोंके मदजलको कीचड़से रास्ते लथपथ हो रहे थे। हाथियोंके कानरूपी चामरोंसे ध्वजोंके अग्रभाग उड़ रहे थे। स्वर्ण चामरोंको अनूठो शोभा हो रही थी। छत्रसमुहने सूर्यको किरणोंको ढक दिया था | ध्वजदण्डोंके समूहने दिशाओंको ढक दिया था। कृतान्त मनुष्योंके घड़ोंके टुकड़ोंको वा रहा था। हीसते हुए अश्योंसे सूर्य के अश्व कर रहे थे। रथके पहियोंसे सर्प चूर-चूर हो रहे थे। वेगसे भरे ऊंचे-ऊंचे कन्धोंपर धड़ नाच रहे थे। हवियोंकी मालाका सेतुबन्ध तैयार किया जा रहा था । तीरोंके जालसे धरतीका अन्तराल पट चुका था। पट पटह, झल्लरि और शंखादि वाद्योंका कोलाहल हो रहा था। सुरवधुओंके विमान आकाशमें छाये हुए थे। इस प्रकार वह युद्ध विषम दुर्गम और दुदर्शनीय हो उठा। उस भयंकर युद्ध में पवनसे धवल ध्वज फहरा रहे थे । गरजते हुए मैगल हाथियों के समान, माय और हनुमान आपसमें भिड़ गये ।। १-१८ ।।