SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० पउमचरित [८] पचौड़या गइन्दया। मिलाषियालि-विन्दना ॥१॥ खयग्गि-पुन-दुस्सहा। मिरि व नुज-विग्गहा ॥२॥ वकाहब द गजिया : जियार सार-सजया ॥३॥ मइलक-गिल्ल-गपदया। धुणन्त-पुच्छ-दण्डया ॥६॥ करग्गि-छिस-अम्बस । कयम्बुवाह-स्वरा ॥५॥ स- दुक दुलाया। झणम्मणन्त-गेजया ॥६|| विवरण-तिक्ख-कपटया । टपट्टणम्त-घण्टया ॥ विसाण-भिण्ण-दिग्मुहा 1 स्पति-घुक्खराउहा ८३ घत्ता ताप किग्रन्तवास-मण रिट आहउ पत्तिारें। पदणत्यवाई दावियई गं सूरहों इत्तिएँ ॥९|| [९] ज लवणमहणउ णिहड रणे। तं महुर-प्प राहिउ कुइउ मणे ॥१॥ भारहिउ महा-रह जुप्पि हय । उम्मविय-धवल-भूवन्त-पय ॥२॥ दुम-णरिन्द-णि धारणहुँ । रहु मरिउ अगन्तहुँ पहरणहुँ ॥३॥ इय समर-भेरि अमरिस-चरिछ। स-रहसु किया तबतको मिदिठ ॥४॥ 'महु सणड तण व जिह णिहट रणे सिह पहरुपहरु दिनु होहि मणे' 1५॥ तहि अवसरें अन्तर थिउ स-धणु। सई दसरह-णन्दणु सत्तहणु ।।६।। ते मिडिय परोप्परु कुदय-मण । णं वे वि पुरन्दर-दहवयण ॥७॥ महि-कारण परिवदन्त-कलि गं मरह शहिय-बाहुबलि ॥८॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy