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मसीहमो संधि
१२० क्षुब्ध हो उठे। कल-कल होने लगा, नगाड़े बजट। असंख्य शंख फूक दिये गये। इसके समान सुन्दर चालवाली शत्रु. स्त्रियोंके गर्भ गिरने लगे। मजबूत लोहेके किवाड तोड़ दिये गये । घरोंके सैकड़ों शिखर मोड़ दिये गये । आगकी ज्वालमाला के समान आलोकिन मणिद्वीपोंसे घरोंकी तलाशी लेकर, उन्होंने मनुष्य, नाग और देवताओंके दुर्पको कुचलनेवाले अस्त्र अपने कब्जे में ले लिये। उसके अनन्तर शत्रुघ्नको प्रणामकर सामन्तोंने सूचित किया, "जिनधर्मके समान इस नगरमें मुझे मधु (शराय, राजा) कहीं भी दिखाई नहीं दिया" ।।१२।।
[७] इतने में वायुदेव नामके विद्याधरको जीतनेवाले मधु. पुत्र लवणमहार्णवने जब देखा कि शत्रुघ्न आ गया है तो वह गुस्सेसे पागल हो उठा। वह कवच पहन और रथपर चढ़कर शत्रुसेनासे जा भिड़ा। तूर्य ध्वनिसे उसने हल्ला मचा दिया । बड़े-बड़े तीरोंसे उसने सेनापति कृतान्तवक्त्रको ढंक दिया । उसने भी रथ सम्हालफर मधुपुत्र लवणमहाणंवके ध्वजदंडके टुकड़े-टुकड़े कर दिये । उसका धनुष तोड़कर, उसे धरतीपर इस प्रकार गिरा दिया, मानो मेघघटाके समय तूफान आ गया हो। तब लयणमहार्णवने भी कृतान्तवक्त्रका धनुष ध्वजसहित छिन्न-भिन्न कर दिया | दोनोंने ही अपने प्राणोंका डर दूरसे छोड़ दिया था, दोनों ही धनुर्वेद विद्याकी अन्तिम सीमापर पहुँच चुके थे | कर्णिका खुरपी कण्णरिय कवच टूट-फूट गये । सारथि लोट-पोट हो गया, अश्व आइत हो उठे। दोनोंने एक-दूसरेको रथ विहीन कर दिया। दोनों हाथियोपर सवार हो गये । आकाशमें यम, धनद् और इन्द्रने उन्हें साधुवाद दिया ॥१-२॥