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किंड कवतुरहूँ आय हूँ ।
चयर-महाराष्ट्र-गाि
विवाह-- फोलिय हूँ ।
लर-णायामर लुध्य-हरणहुँ ।
लिहिला माला-ली वियई ।
पउमचरिय
सतुद्रणागमेँ पत्रण यहाँ ।
उपणु
बरें
।
किड कलयतु तूर-स्वन्नड्ड ।
दिया कि आतामिय- सन्दह ।
तादि पाडि आहयणं ।
विकिन्नव सहाँ त ।
चिरमियम सङ्घ-मयः ॥४॥
पतित
||५||
वर - सिहरसहाय मांडियई ॥६॥
लक्ष्य सावरपाई पहराएँ ॥ ॥ वर वर जाएँ मणि दीक्षियहूँ ||2||
घत्ता
सतह
मंत्र सिरं हि सामन्त हि सीसड़ 1
'पट्टण जिणघर में जिन भट्ट काही मि ण दीसई' ॥२॥
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पुनह लवणमहणनहीं ॥ १ ॥
ष्णहुल पर चले भिडिउ ॥ २ ॥
सरबरें हिकियन्तदन्तु छइउ ॥३॥ भय-दण्डु
सह-जन्दणहीं ।।४।।
दुवाएं महाम
सहुँ चिन्हें द्विष्णु सरामणउ ॥ ६ ॥
बे-भय-पर-पार गय ||७||
दूर
- पाणभय । कण्णय सुरुप्प कपरिय कवय (१) कोट्टाविय सारहि पहय-हय ||८||
चत्ता
विहि मि परोपरु विरहु कि थिय वे विं गइन् । सादुकारिम गयण ब जम धणय - सुरिन्दे हि ॥ २ ॥